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महारान प्रताप जयंती

 

महारान प्रताप जयंती




महारान प्रताप जयंती

 9 मई, 1540

 मैवाड़ के थाई 13वें राजा, महारान प्रताप ? अँगरेज़ी चलैन्दर थाई जन्म वर्षगांठ की शुरुआत 9 मई 1540 को चैलैब्रतैद है, लेकिन राजस्थान में थाई राजपूत समाजवाद की एक लार्गाई सैचशन चैलाइब्रतैस हिज हिंदी चैलेनदार को थाई चैलैब्रत्स।


 महाराणा प्रताप

 मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से संबंध लेख और हुकुमसी भाते लिखित पुस्तक से संसार अनुसार ब्लॉग लिखा गया है।


 महाराणा प्रताप जयंती

 मेवाद के 13वें महाराणा

 राजरविवर्र्म

 राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित महाराणा प्रतापी

 राज्याभिषेक भारंग: फाल्गुन 9, 1493

 ग्रेगरी कैलेंदर: फरावरी 28, 1572

 पूर्वावर्ती महाराणा उदयसिंह

 उत्तरवर्ती महाराणा अमर सिंह [1]

 शिक्षक आचार्य राघवेंद्रो

 जन्म भारंग: वैशाख 19, 1462

 ग्रेगरी कैलेंदर: माई 9, 1540

 कुम्भलगढ़ दुर्ग, मेवाड़ [2]

 (वर्तमान में: कुंभलगढ़ दुर्ग, राजसमंद जिला, राजस्थान, भारत)

 निदान भारंग: पौष 29, 1518

 19 जनवरी 1597 (उम्र 56)

 चावंद, मेवाडी

 (वर्तमान में: चावंद, उदयपुर जिला, राजस्थान, भारत)

 जीवन संगी महारानी अजबडे पंवार साहित्य कुल 11 पत्नियां

 संतान अमर सिंह प्रथम:

 भगवान दासी

 (17 पुत्र)

 पूरा नाम

 महाराणा प्रताप सिंह सिसो महाराणा दिया

 घराना सिसोदिया राजापूत

 पिता महाराणा उदयसिंह

 माता महारानी जयवंताबाई [3]

 धर्म सनातन धर्मी

 महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीय रविवर विक्रम संवत 1597 तदनुसर अंग्रेजी कैलेंदर के 9 मई 1540 - 19 जनवरी 1597) उदयपुर, मेवाद में सिसोदिया राजापूत राजावंश।  उनका नाम इतिहास में वीरता, शौरी, त्याग, पराक्रम और दृष्टि प्राण के लिए अमर है।  उन्होनने मुगल बादशाह अकबर की अधीनाता स्वीकर नहीं की और के सैलून तक संघर्ष किया।  महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को काइन बार युद्ध में भी हरया और हिंदुस्तान के शुद्ध मुगल साम्राज्य को घोटानो पर ला दिया।[5]


 उनका जन्म वर्तमान राजस्थान के कुंभलगढ़ में महाराणा उदयसिंह इवान माता रानी जयवंताबाई के घर हुआ था।  लेख जेम्स तोड के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म मेवाद के कुंभलगढ़ में हुआ था।  इतिहास महाराणा प्रताप का जन्म पाली के राजामहलों में हुआ।

 अनुक्रमी

 1 जन्म स्थान

 2 जीवन

 2.1 हल्दीघाटी का युद्ध

 2.2 समर्पण विचार

 2.3 पृथ्वीराज राठौर का पत्र

 2.4 गोताखोर-छपाली का युद्ध

 2.5 सफल और जोखिम

 3 मृत्यु पर अकबर की प्रतिक्रिया

 4 फिल्म इवान साहिती में

 5 कुछ महात्वपूर्ण ताथी

 6 इसे भी देखें

 7 संदरभि

 8 बहारी कदियां

 जन्म स्थान

 महाराणा प्रताप के जन्मस्थान के प्रश्न पर दो धारणा है।  पहल महाराणा प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था क्योंकी महाराणा उदयसिंह और जयवंताबाई का विवाह कुंभलगढ़ महल में हुआ।  दूसरी धारणा यह भी है की उनका जन्म पाली के राजामहलों में हुआ।  महाराणा प्रताप की माता का नाम जयवंता बाई था, जो पाली के सोनागरा अखिराज की बेटी थी।  महाराणा प्रताप का बचपन भील समुद्र के साथ बिटा, भीलों के साथ ही वे युद्ध काला सिखाते थे, भील ​​अपने पुत्र को कीका कहर पुकारते हैं, [9] इसली भील महाराणा को कीका नाम से।  लेख विजय नाहर की पुस्तक हिंदुवा सूर्य महाराणा प्रताप के अनुभव जब प्रताप का जनम हुआ था उस समय उदयसिंह युद्व और असुरक्षा से घिरे हुए। [10]  कुम्भलगढ़ किसी तरह से सुरक्षित नहीं था।  जोधापुर के शक्तिशाली रातौदी राजा राजा मालादेव उन दिनों उत्तर भारत में सबे शक्तिसंपन थे।  इवान जयवंता बाई के पिता एवं पाली के शशाक सोनागारा अखेड़ाज मालादेव का एक विश्वासी सामंत इवान सेनानायक था।


 इस करन पाली और मारावाड हर तार से सुरक्षित था और रनबंका रातौडो की कामध्वज सेना के सामने अकबर की शक्ति बहुत कम थे, अत: जयवंत बाई को पाली भेजा गया।  vi.  सैन।  ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया सान 1597 को प्रताप का जन्म पाली मारावाद में हुआ।  प्रताप के जन्म का शुभ समाचार मिलते ही उदयसिंह की सेना ने प्रार्थना प्रारंभिक कर दिया और मावली युद्ध में बनावीर के विरुद्ध विजय श्री प्रप्त कर चित्तौड के सिन्हासन पर अपना अधिकार। [11]  भारते प्रशानिक सेवा से सेवानिवत अधिकारारी देवेंद्र सिंह शक्तावत की पुस्तक महाराणा प्रताप के प्रमुख सहयोगी के जन्म स्थान महाराणा प्रताप का जन्म स्थान महान के गढ़ के हरशेश में।  यहाँ सोनागड़ों की कुलदेवी नागनाचे का मंदिर आज भी सुरक्षित है।  पुस्तक के अनुसार पुरानी परंपरा के अनुसर लड़की का पहला पुत्र अपने पेशाब में होता है। [13]


 इतिहासाकार अर्जुन सिंह शेखावत के लेख अनुसार महाराणा प्रताप की जन्मपत्रिका पुराणी दिनमान पद्धति से अर्धरात्रि 12/17 से 12/57 के मध्य जन्मामाय से बनी हुई है।  5/51 पलामा पर बने सूर्योदय 0/0 पर स्पर्श सोरी का मालूम होना जरूरी है इससे जन्मकाली इष्ट आ जाते हैं।  यह कुंडली चित्तौद या मेवाद के किसी स्थान में हुई होती तो प्रातः स्पश्त सूरी का राशि अंश काला अलग होती।  पंडित द्वार स्थान कालागणन पुराणी पदति से बने प्रातः सूर्योदय राशि काला विकल पाली के समान है। [14]


 य़े हुकमसिंह भाती की पुस्तक सोनारा सांचोरा चौहानों का इतिहास 1987 इवान इतिहासाकार मुहता नैनासी की पुस्तक ख्यात मारावाद र परगना री विगत में भी स्पशत है "पाली के प्रतिष्ठिता संथार।  47 घडी 13 पल गए एक ऐसे दीदीप्यमन बालक को जन्म दिया। धन्य है पाले की यह धारा जिसने प्रताप जैसे रतन को जन्म दिया।" [15] [16]


                               वंशवृक्ष

 

🔹 राणा संग

 

 🔹उदय सिंह

 

🔹 रानी कर्णावती

 

🔹 महाराणा प्रतापी

 

🔹 राज गानारा चौहवन


 🔹राज गानारा चौहान

 

🔹 जयवंताबाई

 

🔹 रई भाई 

 

🔹 जीवन


 चेतक पर सवार राणा प्रताप की प्रतिमा (महाराणा प्रताप स्मारक समिति, मोती मगरी, उदयपुर)

 णा उदयसिंह की दोसरी रानी धीरेबाई जिस राज्य के इतिहास में रानी भाटियानी के नाम से जाना जाता है, यह आपके पुत्र कुंवर जगमाल को मेवाद का उत्तराधिकारी बनाना था |  प्रताप की उत्तराधिकारी होने पर इसकी विरोध स्वरूप जगमाल अकबर की शाइना में चला जाता है।  महाराणा प्रताप का प्रथम राज्याभिषेक में 28 फरवरी, 1572 में गोगुन्दा में हुआ था, लेकिन विधि विधानस्वरूप राणा प्रताप का दशहरा राज्याभिषेक 1572 ईई।  में ही कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ, दसरे राज्याभिषेक में जोधापुर का राठौद शासक राव चंद्रसेन भी अपस्थित थे। [17]


 राणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियां की तुम उन पत्नियों और उनसे प्रताप उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम है[18]:-


 महाराणी अबड़े पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास

 अमरबाई राठौर :- नत्थ:

 शाहमती बाई हाड़ा :-पुरा

 अलमदेबाई चौहान :- जसवंत सिंह

 रत्नावती बाई परमार :-माल, गज, क्लिंगु

 लाखाबाई :- रायभाना

 जसोबी चौहान :-कल्याणदास:

 चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनावलादास और दुर्जन सिंह

 सोलानाखिनीपुर बाई :- साशा और गोपाली

 फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा

 खीचर आशाबाई :- हठी और राम सिंह

 महाराणा प्रताप के शसनकाल में सबे रोचक साथ में यह है कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने ज्यादा लाना चाहता था इसली अकबर ने प्रताप को समाधान के झूठ चार सात राजदो  में जलाल खान प्रताप के खेमे में गया, इसी क्रम में मानसिंह (1573 ईई में), भगवानदास (सीतांबर, 1573 ईई में) तथा राजा तोदारमल (दसंबर, 1573 ईई।) प्रताप को झूठ समाधाने  चारोन को निराश किया, इस तरह राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनाता स्वेकर करने से मन कर दिया जिसे परिणामस्वरूप हल्दी घटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ।[19]

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